Saturday, 29 August 2015

वन रैंक-वन पेंशन - 30 साल की मुराद, बनाम 10 हजार परिवार

वन रैंक-वन पेंशन - 30 साल की मुराद, बनाम 10 हजार परिवार 


बस्ती : 30 वर्षों से उठ रही वन रैंक-वन पेंशन की मुराद पूरी होने का आसार दिखते ही 10 हजार पूर्व सैनिक परिवारों में उम्मीद के दिए जगमगाने लगे हैं। इन सबका कहना है कि असली जश्न तो तब होगा, जब इसकी घोषणा हो जाएगी। 30 साल पहले एक्स सर्विस मैन एसोसिएशन ने सबसे पहले यह आवाज उठाई थी।

पूर्व सैनिकों के लिए यह मांग बेहद अहमियत इसलिए रखती है, क्योंकि 33 साल की उम्र में रिटायर होने के बाद बाकी उम्र पेंशन पर ही गुजारनी होती है। वन रैंक वन पेंशन मतलब अलग-अलग समय पर रिटायर हुए एक ही रैंक के दो फौजियों को समान पेंशन देना। फिलहाल रिटायर होने वाले लोगों को उनके रिटायरमेंट के समय के नियमों के हिसाब से पेंशन मिलती है। यानी जो लोग 25 साल पहले रिटायर हुए हैं उन्हें उस समय के हिसाब से पेंशन मिल रही है जो बहुत कम होती है।


फौजियों की मांग है कि 1 अप्रैल 2014 से यह योजना छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के साथ लागू किया जाए। सेवानिवृत्त कर्नल केसी मिश्र का कहना है कि हमें तो 33 साल पर ही रिटायर कर दिया जाता है, और उसके बाद सारा जीवन हम पेंशन से ही गुजारते हैं। जबकि अन्य कर्मचारी 60 साल तक पूरी तनख्वाह पाते हैं। ऐसे में दूसरे विभागों को न देखते हुए सैनिकों को यह सुविधा मिलनी चाहिए। रिटायर्ड सैन्यकर्मी लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं। इसे लेकर कई पूर्व सैन्यकर्मियों ने अपने पदक लौटा दिए थे। इसकी पहली वजह यह है कि अभी सैन्यकर्मियों को एक ही रैंक पर रिटायरमेंट के बाद उनकी सेवा के कुल वर्ष के हिसाब से अलग-अलग पेंशन मिलती है।

छठां वेतन आयोग लागू होने के बाद 1996 से पहले रिटायर हुए सैनिक की पेंशन 1996 के बाद रिटायर हुए सैनिक से कम हो गई। इसी तरह 2006 से पहले रिटायर हुए मेजर की पेंशन उनके बाद रिटायर हुए अफसर से कम हो गई। मांग उठने की एक वजह यह भी है कि चूंकि सैन्यकर्मी अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में जल्दी रिटायर हो जाते हैं, इसलिए उनके लिए पेंशन स्कीम अलग रखी जाए। बकौल मिश्र 30 साल पहले एक्स सर्विस मैन एसोसिएशन बनाकर मांग उठाई गई। 2008 में इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईएसएम) नामक संगठन बनाकर रिटायर्ड फौजियों ने संघर्ष तेज किया। जो अब निर्णायक दौर में पहुंचा है।

इसलिए होती रही देरी
- सरकार को इस बात का भय है कि आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के लिए यह योजना लागू करने के बाद कहीं दूसरे अ‌र्द्धसैनिक बलों (पैरामिलिट्री फोर्सेस) की तरफ से भी इस तरह की मांग न उठे।

हालांकि केंद्र ने अब इस पेंशन योजना के लिए अलग प्रशासनिक और आर्थिक ढांचा तैयार कर लिया है।

कब क्या-क्या हुआ
- 1973 तक सेना में वन रैंक वन पेंशन थी। उन्हें आम लोगों से ज्यादा वेतन मिलता था।
- 1973 में आए तीसरे वेतन आयोग ने सशस्त्र बलों का वेतन आम लोगों के बराबर कर दिया।
- सितंबर 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को वन रैंक वन पेंशन पर आगे बढ़ने का आदेश दिया।
- मई 2010 में सेना पर बनी स्थाई समिति ने वन रैंक वन पेंशन लागू करने की सिफारिश की।
- सितंबर 2013 - बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने प्रचार के दौरान वन रैंक वन पेंशन लागू करने का वादा किया।
- फरवरी 2014 - यूपीए सरकार ने इसे लागू करने का फैसला किया और 500 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया।
- जुलाई 2014 - मोदी सरकार ने बजट में वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा उठाया और इसके लिए अलग से 1000 करोड़ रुपए रखने की बात की।

- फरवरी 2015 - सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को तीन महीने के अंदर वन रैंक वन पेंशन लागू करने को कहा।

Read at: Jagran

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